एस. एस. बांगा, पर्यावरणविद, फरीदाबाद
(बातचीत पर आधारित विशेष लेख)
NCR संवाद: प्रकृति, पशु-पक्षी और मानव जीवन का अटूट संबंध भारत की सांस्कृतिक धरोहर में गहराई से समाया हुआ है। भारत में पशु-पक्षियों को केवल जीव मात्र नहीं, बल्कि सहचर, पूजनीय और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा गया है। आदि काल से ही ये हमारे धर्म, परंपराओं और लोककथाओं का अभिन्न अंग रहे हैं।
भारतीय संस्कृति में वन्यजीवों का महत्व: हमारे धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं में पशु-पक्षियों का उल्लेख अत्यंत सम्मानजनक रूप में किया गया है। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ एक पक्षी है, मां दुर्गा सिंह पर विराजमान होती हैं, भगवान गणेश का वाहन मूषक है, और भगवान शिव नंदी बैल के साथ जुड़े हैं। देवी सरस्वती का वाहन हंस माना जाता है। यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षियों को दिव्यता और सम्मान प्राप्त है। पुराणों और लोककथाओं में भी पशु-पक्षियों को बुद्धिमान, संवेदनशील और नैतिकता का प्रतीक बताया गया है। वे प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
वन्यजीव संरक्षण: भारत की उपलब्धियां: हर साल 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य वन्यजीवों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के लिए जागरूकता बढ़ाना है। भारत वन्यजीव संरक्षण में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा टाइगर रेंज वाला देश है, जहां 70% से अधिक बाघों की आबादी निवास करती है।
- 2014 में भारत में बाघों की संख्या 2,226 थी, जो 2023 में बढ़कर 3,682 हो गई।
- भारत एशियाई शेरों वाला दुनिया का एकमात्र देश है।
- देश में 60% से अधिक जंगली एशियाई हाथी पाए जाते हैं, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा एशियाई हाथी रेंज वाला देश बन गया है।
- पिछले 4 वर्षों में तेंदुओं की संख्या में 60% वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत में 89 रामसर साइट्स (आर्द्रभूमि संरक्षण स्थल) हैं, जो वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में वन्यजीव संरक्षण को लेकर कई सकारात्मक पहल की गई हैं। 2022 में 70 साल बाद चीते भारत लौटे, जिससे वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि जुड़ गई। आज चीते भारत में फिर से तेजी से फल-फूल रहे हैं।
वन्यजीवों के संरक्षण की जरूरत: वन्यजीव केवल जैव विविधता का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे हमारी पारिस्थितिकी का अभिन्न अंग हैं। पर्यावरणविद एस. एस. बांगा के अनुसार, वन्यजीवों के फलने-फूलने के लिए इकोलॉजी का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यदि पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होगा, तो वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी संकट आ जाएगा।
एसएस बांगा कहते हैं कि मनुष्य और पशु-पक्षियों के बीच का संबंध केवल व्यवहारिक या आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भावनात्मक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी गहरा है। इसे बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
आज की पीढ़ी को प्रकृति और वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। वन्यजीवों के बिना हमारी पारिस्थितिकी कमजोर हो जाएगी, इसलिए हमें मिलकर इनके संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए।
भारत वन्यजीवों की समृद्ध विरासत वाला देश है, और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस धरोहर को बचाए रखें। यदि हम वन्यजीवों का संरक्षण करेंगे, तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी। इस विश्व वन्यजीव दिवस पर संकल्प लें कि हम प्रकृति और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाएंगे और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।