भारत को कैसे Make in India से Make for the World की ओर बढ़ना चाहिए- बता रहे हैं मनीष गुप्ता
NCR संवाद: डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर पूरी दुनिया हमेशा सतर्क रहती है। ट्रंप एक बार फिर ग्लोबल ट्रेड सिस्टम को झटका देने की ओर बढ़े थे, लेकिन इस बार 90 दिनों की मोहलत देकर उन्होंने इंडस्ट्री को थोड़ा राहत का मौका जरूर दिया है। 90 दिन की टैरिफ राहत को सिर्फ एक छूट समझना भूल होगी। यह भारत के लिए एक रणनीतिक डेडलाइन है… यह कहना है इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य (CEC) मनीष गुप्ता का, जो इस वैश्विक व्यापार समर को केवल चुनौती नहीं, बल्कि अवसर के रूप में देख रहे हैं।
टैरिफ से राहत, लेकिन चेतावनी बाकी है: 2 अप्रैल को जब राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने का एलान किया, तो 100 से अधिक देशों की इंडस्ट्री में हलचल मच गई। भारतीय MSME निर्यातकों, टेक कंपनियों और फार्मा इंडस्ट्री के लिए यह बड़ा झटका था। लेकिन महज सात दिन बाद 90 दिनों की टैरिफ टालने की घोषणा ने राहत दी है।
गुप्ता कहते हैं कि यह समय हमारे निर्यातकों के लिए ‘ऑर्डर फास्ट ट्रैक’ करने का है। खरीदारों की ओर से यह साफ निर्देश आने लगे थे कि माल 9 अप्रैल तक रवाना कर दिया जाए, नहीं तो ऑर्डर घटा दिया जाएगा। अब कंपनियों के पास विंटर सीजन के ऑर्डर पूरे करने और सप्लाई चेन को व्यवस्थित करने का सुनहरा मौका है।
स्टार्टअप्स के लिए चुनौती नहीं, बदलाव का मौका हैं ये 90 दिन: भारत के स्टार्टअप्स और आईटी इंडस्ट्री के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी इन सेक्टरों के लिए खतरे की घंटी है। खासकर भारतीय सॉफ्टवेयर, एआई, फिनटेक और ई-कॉमर्स स्टार्टअप्स जिनकी निर्भरता अमेरिकी क्लाइंट्स पर है, उन्हें अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। टेक और दवा उद्योगों के लिए यह 90 दिन किसी वरदान से कम नहीं हैं। यही समय है जब वे नए बाजारों की तलाश कर सकते हैं।
टेक्सटाइल, फार्मा, ऑर्गेनिक केमिकल्स में नई उम्मीद: टैरिफ वॉर में भारत के कुछ सेक्टरों को नुकसान की संभावना जताई गई, जैसे ऑटोमोबाइल्स, मेटल्स और जेम्स-ज्वैलरी। लेकिन टेक्सटाइल, फार्मा, सोलर पैनल्स और ऑर्गेनिक केमिकल्स जैसे सेक्टरों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलने का अनुमान भी लगाया जा रहा है, क्योंकि भारत के प्रतिद्वंद्वी देशों पर टैरिफ अधिक हैं। यह ‘आपदा में अवसर’ की स्थिति है। हमें अपने MSME को प्रोत्साहित कर उत्पादों की गुणवत्ता और ब्रांड वैल्यू को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाना चाहिए।
फायदे की उम्मीद, लेकिन रणनीति जरूरी: अमेरिका यदि चीन से दूरी बनाता है तो भारत की IT, एग्रीकल्चर और टेक इंडस्ट्री को इसका सीधा लाभ मिल सकता है। पहले भी 2018-20 के ट्रेड वॉर के दौरान भारत को कुछ लाभ मिले थे, हालांकि GDP ग्रोथ पर नकारात्मक असर भी पड़ा था। इसलिए इस बार हमें सावधानी और रणनीतिक दूरदर्शिता दोनों के साथ कदम बढ़ाना होगा।
व्यापार समझौते की जरूरत: "मनीष गुप्ता कहते हैं कि, फिलहाल भारत और अमेरिका लगभग 200 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 500 अरब डॉलर तक ले जाने की दिशा में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान इस पर सहमति बनी थी। मेरी राय में इस 90-दिन की अवधि का उपयोग भारत को अमेरिका के साथ बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (BTA) को तेजी से अंतिम रूप देने के लिए करना चाहिए। इससे टैरिफ जैसी अस्थिरताओं से बचा जा सकता है और निर्यातकों को स्थायी समाधान मिलेगा।"
Quick Highlights
- 18%: भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी
- 6.22%: भारत के आयात में अमेरिकी योगदान
- 191 अरब डॉलर: 2023-24 में कुल द्विपक्षीय व्यापार
- 2030 Target: इसे 500 अरब डॉलर तक ले जाने का विज़न
भारत को आगे क्या करना चाहिए
- द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) पर तेजी: भारत-अमेरिका व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। सितंबर-अक्टूबर 2025 तक इसका पहला चरण पूरा होना है। सरकार को इस दिशा में नीतिगत स्पष्टता और तेज़ी लानी चाहिए।
- लॉजिस्टिक्स और कस्टम सुधार: भारत को अपनी पोर्ट सुविधाओं, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और टैक्स संरचना को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना होगा।
- निर्यात बाज़ारों का डायवर्सिफिकेशन: अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता के बजाय भारत को यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे बाजारों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ानी चाहिए।
(मनीष गुप्ता, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (IIA) के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं।)