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PGICH की स्टडी: हीमोफीलिया सिर्फ पुरुषों की बीमारी नहीं, महिलाओं को भी है बराबर खतरा

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NCR संवाद:  हीमोफीलिया—एक ऐसी अनुवांशिक रक्तस्राव से जुड़ी बीमारी, जिसे अब तक सिर्फ पुरुषों की समस्या माना गया। पर हाल ही में PGICH (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ) नोएडा की एक विस्तृत मेडिकल स्टडी ने इस धारणा को पूरी तरह झुठला दिया है।

इस स्टडी में शामिल 68 महिलाओं में से 20 (लगभग 30%) ने गंभीर ब्लीडिंग (रक्तस्राव) के लक्षण बताए। इनमें अत्यधिक मासिक धर्म (Menorrhagia), सर्जरी के बाद रक्त बहना, प्रसव के दौरान या बाद में खून का रुकना मुश्किल होना जैसी समस्याएं थीं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि इनमें से किसी भी महिला को अब तक औपचारिक रूप से ब्लीडिंग डिसऑर्डर के लिए जांच तक नहीं की गई थी।


 सिर्फ कैरियर नहीं, ये महिलाएं असल में मरीज़ हैं: नई चिकित्सा परिभाषा (ISTH) के अनुसार, जिन महिलाओं में फैक्टर VIII या IX का स्तर 40% से कम होता है, उन्हें ‘माइल्ड या मॉडरेट हीमोफीलिया से पीड़ित माना जाना चाहिए। लेकिन इस स्टडी ने दिखाया कि अधिकतर महिलाओं को अभी भी Unaffected Carrier कहा जाता है, जिससे उन्हें सही इलाज और पहचान नहीं मिलती।

स्वास्थ्य की गुणवत्ता को नापने के लिए EQ-5D-5L स्कोरिंग टूल से पाया गया कि हीमोफीलिया जीन वाली महिलाएं, अन्य ब्लीडिंग डिसऑर्डर से ग्रस्त महिलाओं की तुलना में अधिक शारीरिक और मानसिक कष्ट झेल रही थीं। इनमें दैनिक कार्य सीमित और बाधित, दर्द और असहजता अधिक, चिंता/अवसाद) काफी अधिक रिपोर्ट किया गया।


जब तकलीफ थी, तब भी इलाज नहीं मिला

इस स्टडी में शामिल महिलाओं में 18 को अत्यधिक मासिक रक्तस्राव, 1 को प्रसवपूर्व रक्तस्राव, 1 को गर्भपात के बाद, 1 को प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव हुआ, 2 को जोड़/मांसपेशियों से खून बहा,, 1 को ENT और 1 को जठरांत्र (GI) रक्तस्राव हुआ इनमें से 3 महिलाओं को तो अस्पताल में भर्ती कर ब्लड प्रोडक्ट्स चढ़ाने पड़े।

अध्ययन ने उन सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी उजागर किया, जो महिलाओं को अपनी बीमारी स्वीकारने से रोकते हैं।

  • मासिक धर्म को लेकर शर्म: कई महिलाएं अत्यधिक रक्तस्राव को ‘नॉर्मल’ मानकर सहती रहीं।
  • अभिभावकों की चुप्पी: कई लड़कियों से उनके माता-पिता ने कभी मासिक धर्म पर खुलकर बात नहीं की।
  • Self-Neglect (स्व-उपेक्षा): महिलाएं भाई/बेटे की बीमारी को प्राथमिकता देती हैं और खुद की समस्या को नज़रअंदाज़ करती हैं।

अध्ययन की संरचना

  • पूर्व शोध के अनुसार, 38% महिलाओं में ISTH BAT स्कोर पॉजिटिव आने की संभावना थी। इसी आधार पर 5 साल के लिए 363 प्रतिभागियों का लक्ष्य रखा गया। इस रिपोर्ट में पहले 6 महीनों में भर्ती हुई 80 महिलाओं का डेटा शामिल किया गया है।

क्या बदलना ज़रूरी है  PGICH के डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक हिमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी की डॉ. नीता राधाकृष्णन बताती हैं कि स्टडी रिपोर्ट के आधार पर महिलाओं में बीमारी को लेकर Carrier शब्द की जगह Mild/Moderate Hemophilia Patient को अपनाना होगा। महिलाओं को मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव, और सर्जरी जैसे जीवन के संवेदनशील मोड़ों पर रक्तस्राव से जुड़ी जाँच की सलाह दी जानी चाहिए। नई चिकित्सा तकनीकें, जैसे जीन थैरेपी, अब महिलाओं को राहत देने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

PGICH की इस रिसर्च में शामिल डॉक्टरों में डॉ. नीता राधाकृष्णन (Lead Author), डॉ. अर्चित पंधरिपांडे, डॉ. अनुकृति श्रीवास्तव, डॉ. श्रुति वर्मा, डॉ. पी बेबी, डॉ. हरी एम गैरे, डॉ. सावित्री सिंह हैं। यह शोध इन सभी विशेषज्ञों की टीम द्वारा किया गया था और उन्होंने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर करने में योगदान दिया।