NCR संवाद: देश की आर्थिक प्रगति की कहानी जब भी लिखी जाएगी, तो उसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) की भूमिका को कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। यही वो क्षेत्र है, जो भारत की जीडीपी में लगभग 30% योगदान देता है और करोड़ों लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है। लेकिन इतने महत्वपूर्ण सेक्टर से जुड़े नोएडा के हजारों उद्यमी आज भी किराए की फैक्ट्रियों और शेड्स में अपना कारोबार चला रहे हैं। आइए जानते हैं इस अहम मुद्दे पर क्या कहते हैं एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन, नोएडा के कोषाध्यक्ष रमेश राठौर…
‘सुविधाएं सब कुछ हैं, लेकिन ज़मीन हाथ नहीं आती’: रमेश राठौर कहते हैं कि ‘नोएडा में बड़े उद्योगों के लिए जो सुविधाएं हैं, वे अद्वितीय हैं। लेकिन अगर कोई छोटा उद्यमी अपना फैक्ट्री या यूनिट शुरू करना चाहे, तो उसे सबसे पहले ज़मीन की कीमत की दीवार से टकराना पड़ता है, और यही दीवार उसकी उड़ान को रोक देती है।‘
रमेश का सुझाव है कि अगर नोएडा प्राधिकरण छोटे भूखंडों की योजना लाए— जैसे 55, 114, 171, 200, 250 वर्ग मीटर और उन्हें MSME उद्यमियों की क्रय शक्ति के अनुसार सुलभ बनाया जाए, तो न केवल हजारों किराएदार उद्यमी आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि देश की औद्योगिक ताकत को भी नई धार मिलेगी।
इन तीन सुझावों पर काम करना जरूरी
- छोटे आकार के भूखंडों की नई योजना लाई जाए, ताकि MSME को उनके बजट में ज़मीन मिल सके।
- भूखंडों की कीमत MSME वर्ग की भुगतान क्षमता के अनुरूप तय हो, जिससे यह वर्ग मजबूती से खड़ा हो सके।
- भूखंड आवंटन की प्रक्रिया डिजिटल और पारदर्शी हो, ताकि सही उद्यमियों को अवसर मिल सकें।
विशेष MSME क्लस्टर से खुलेगा विकास का रास्ता: रमेश राठौर का मत है कि यदि MSME के लिए समर्पित क्लस्टर की योजना लाई जाए, जिनमें छोटे भूखंड हों, पर्याप्त पार्किंग, लॉजिस्टिक्स सुविधा, वर्कशॉप स्पेस हो तो नोएडा सिर्फ बड़े उद्योगों का नहीं, संतुलित और समावेशी औद्योगिक शहर बन जाएगा। इससे रोजगार बढ़ेगा, निर्यात को ताकत मिलेगी और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी राष्ट्रीय योजनाएं सफल होंगी।
राठौर कहते हैं कि यह मांग केवल जमीन की नहीं, आत्मनिर्भरता की है। यह सिर्फ भूखंड की बात नहीं, उद्योग और रोजगार की नींव की बात है। नोएडा आज जिस मुकाम पर है, वहां वह एमएसएमई के लिए प्रेरक मॉडल बन सकता है। जब छोटे उद्योग उड़ान भरते हैं, तो देश ऊंचाइयों तक पहुंचता है