प्रोजेक्ट दृष्टि से 300 आंखों को मिलेगी रोशनी की नई किरण

रोटरी क्लब ऑफ नोएडा और तिरुपति चैरिटेबल ट्रस्ट ने मिलकर चलाई मुहिम

साल 2024-25 में पहले सत्र के तहत 300 लोगों की आंखों का होगा ऑपरेशन

एनसीआर संवाद 
नोएडा, 24 नवंबर। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के जीवन में रोशनी की नई किरण लाने के लिए रोटरी क्लब ऑफ नोएडा (rotary club of noida) तीन साल से प्रोजेक्ट दृष्टि (project drishti 3.0) पर काम कर रहा है। प्रोजेक्ट के तहत मोतियाबिंद के मरीजों का आधुनिक तकनीक से ऑपरेशन किया जाता है। साल 2024-25 के अंतर्गत रोटरी क्लब ऑफ नोएडा और तिरुपति आई सेंटर (tirupati eye centre) के तिरुपति चैरिटेबल ट्रस्ट (tirupati charitable trust) 300 आंखों को रोशन करने का जिम्मा उठाया है। रविवार को प्रोजेक्ट के पहले सत्र का उद्घाटन किया गया। पहले सत्र में 150 और फरवरी व मार्च में दूसरे सत्र में 150 ऑपरेशन किए जाएंगे। रोटरी क्लब ऑफ नोएडा की अध्यक्ष एवं तिरुपति आई सेंटर की चेयरपर्सन डॉ. मोहिता शर्मा प्रोजेक्ट का नेतृत्व करेंगी। प्रोजेक्ट दृष्टि 3.0 का उद्घाटन रोटरी क्लब ऑफ नोएडा डिस्ट्रिक्ट 3012 के असिस्टेंट गवर्नर रोटेरियन प्रकाश रिजौतिया ने किया। इस अवसर पर सीनियर मेंबर रोटेरियन अयोध्या आनंद, रोटेरियन दर्दी, पास्ट प्रेसिडेंट आशा वालिया, सेक्रेटरी रोटेरियन अलका चोपड़ा, प्रोजेक्ट की चेयर रोटेरियन सूची भाटला, को चेयर अंशु अग्रवाल और सदस्य सुधीर मिढ़ा सहित कई अतिथि मौजूद रहे। 
सीनियर आई सर्जन डॉ. मोहिता शर्मा ने बताया कि मोतियाबिंद एक ऐसी बीमारी है जिसका सही समय पर इलाज होना जरूरी है। अगर सही समय पर इलाज नहीं हुआ तो मोतियाबिंद पक जाता है और पका हुआ मोतियाबिंद किसी भी दिन फटकार आंख का दबाव बढ़ा सकता है। इससे आंख के पीछे की नस खराब हो सकती है। नस एक बार खराब हो जाए तो उसका कोई इलाज नहीं है। आज भी लोगों में एक गलत धारणा है कि मोतियाबिंद पकने के बाद इलाज होना चाहिए और ऑपरेशन सिर्फ सर्दियों में होना चाहिए। आजकल ऑपरेशन आधुनिक तकनीक (operation Phacoemulsification) से होते हैं जिसको सामान्य भाषा में लेजर कैटरेक्ट सर्जरी भी कहा जाता है। कुछ साल पहले जब मोतियाबिंद का ऑपरेशन बड़े चीरे और कई टांके (stitches) के साथ होता था ( परहेज डेढ़ से दो महीने का होता थ्रा। यह परहेज गर्मियों में करना संभव नहीं था, इसलिए यह धारणा बन गई कि सर्दियों में ऑपरेशन होने चाहिए। लेकिन आधुनिक युग में तकनीक बदल गई है। मोतियाबिंद का ऑपरेशन पूरे साल में कभी भी हो सकता है।
डॉ. मोहिता शर्मा ने बताया कि जिन मरीजों का ऑपरेशन किया जाएगा, उनमें ज्यादातर गौतमबुद्धनगर जिले के हैं। तिरुपति आई सेंटर की टीम जिले के कई गांवों में कैंप लगाती है और ऐसे मरीजों का चयन करती है जिन्हे मोतियाबिंद के ऑपरेशन की आवश्यकता है। ऐसे मरीजों को ऑपरेशन का समय दिया जाता है। कई मरीज ऐसे भी होते हैं, जिनके पास गांव से शहर तक आने के साधन नहीं होते। उन्हें साधन उपलब्ध कराया जाता है। इस अवसर पर प्रोजेक्ट की चेयर रोटेरियन सूची भाटला, को चेयर अंशु अग्रवाल और सदस्य सुधीर मिढ़ा सहित कई अतिथि मौजूद रहे। 

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